"" *आओ बनें प्रज्ञावान* ""
अपने कदमों को बढ़ाती हूँ तो जल जाती हूँ
*बाबा लक्ष्मण दास जी की स्तुति (गीत)*
सूरज जैसन तेज न कौनौ चंदा में।
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
गृहस्थ-योगियों की आत्मा में बसे हैं गुरु गोरखनाथ
हम हंसना भूल गए हैं (कविता)
क्या गुनाह है लड़की होना??
यक़ीनन मुझे मरके जन्नत मिलेगी
तुम जो रूठे किनारा मिलेगा कहां
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
मुझ जैसा रावण बनना भी संभव कहां ?
/ आसान नहीं है सबको स्वीकारना /
Dr.(Hnr). P.Ravindra Nath