जीवन दिव्य बन जाता
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
23/110.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
ज़िंदगी को मैंने अपनी ऐसे संजोया है
महानिशां कि ममतामयी माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
तेरे लिखे में आग लगे / MUSAFIR BAITHA
उसने मुझे बिहारी ऐसे कहा,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जीत और हार ज़िंदगी का एक हिस्सा है ,
सिनेमा,मोबाइल और फैशन और बोल्ड हॉट तस्वीरों के प्रभाव से आज
मै ज़ब 2017 मे फेसबुक पर आया आया था
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
लोकतन्त्र के हत्यारे अब वोट मांगने आएंगे
भरी आँखे हमारी दर्द सारे कह रही हैं।
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
Vishnu Prasad 'panchotiya'
आया यह मृदु - गीत कहाँ से!
अच्छा ख़ासा तआरुफ़ है, उनका मेरा,
काश आज चंद्रमा से मुलाकाकत हो जाती!