वापस लौट आते हैं मेरे कदम
ख्याल तुम्हारा आता है जब रात ये आधी लगती है*
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
कभी अपने लिए खुशियों के गुलदस्ते नहीं चुनते,
कैसे निभाऍं उस से, कैसे करें गुज़ारा।
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
छह दिसबंर / मुसाफ़िर बैठा
सनम की शिकारी नजरें...
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
माथे पर दुपट्टा लबों पे मुस्कान रखती है
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
अपने जमीर का कभी हम सौदा नही करेगे
आज तुझे देख के मेरा बहम टूट गया
गोरे तन पर गर्व न करियो (भजन)