तुम्हें युग प्रवर्तक है शत-शत नमन।।
आज कल ट्रेंड है रिश्ते बनने और छुटने का
मैं जब जब भी प्यार से,लेता उन्हें निहार
रोटी का कद्र वहां है जहां भूख बहुत ज्यादा है ll
सफ़ीना छीन कर सुनलो किनारा तुम न पाओगे
दूर हो गया था मैं मतलब की हर एक सै से
ढलता सूरज गहराती लालिमा देती यही संदेश
अक्सर ज़रूरतें हमें एक - दूसरे के पास लाती है।
प्रेम भरे कभी खत लिखते थे
*बुरे फँसे सहायता लेकर 【हास्य व्यंग्य】*
उदासियां बेवजह लिपटी रहती है मेरी तन्हाइयों से,
शिक्षा अर्जित जो करे, करता वही विकास|
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अति गरीबी और किसी वस्तु, एवम् भोगों की चाह व्यक्ति को मानसिक