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2 Oct 2022 · 1 min read

246. “हमराही मेरे”

हिन्दी काव्य-रचना संख्या: 246 .
शीर्षक: “हमराही मेरे”
(सोमवार, 17 दिसम्बर 2007)
—————————-

तुम संग चलो हमराही मेरे
अब मंजिल एक हमारी है।
जो डगर है तेरी
वो डगर है मेरी
अब डगर नहीं कोई न्यारी है।
अब मिलके चले हम
आगे बढें हम
रोके नहीं जमाना कोई।
नई लग्न
है चाह नई
नहीं पुराना बहाना कोई।।
अबके मौसम कोई भी आए
खिलनी हर बगिया – क्यारी है।
तुम संग चलो हमराही मेरे
अब मंजिल एक हमारी है ।।
सब भय शंका अब दूर करो
अब आऐंगे दिन सुहाने।
सब उलझन अब त्यागो तुम
संवारों सब आशियाने।।
धीर धरो कुछ सब्र करो
काहे की बेकरारी है।
तुम संग चलो हमराही मेरे
अब मंजिल एक हमारी है ।।

-सुनील सैनी “सीना”
राम नगर, रोहतक रोड़, जीन्द (हरियाणा)-126102.

1 Like · 433 Views
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