*रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता,*
दाद ओ तहसीन ओ सताइश न पज़ीराई को
रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
सामाजिक कविता: पाना क्या?
उम्र तो गुजर जाती है..... मगर साहेब
गर गुनहगार मै हूँ तो गुनहगार तुम भी हो।
याद करने पर याद करता है ,
परेशानी बहुत ज़्यादा है इस दुनिया में जीने में
किसी राह पे मिल भी जाओ मुसाफ़िर बन के,
मुझको आँखों में बसाने वाले
आपकी अच्छाइयां बेशक अदृश्य हो सकती है!
शब्द सुनता हूं मगर मन को कोई भाता नहीं है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
जीवनसाथी तुम ही हो मेरे, कोई और -नहीं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*होता है पिता हिमालय-सा, सागर की गहराई वाला (राधेश्यामी छंद)
దేవత స్వరూపం గో మాత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'