व्यक्ति के शब्द ही उसके सोच को परिलक्षित कर देते है शब्द आपक
वो भी तिरी मानिंद मिरे हाल पर मुझ को छोड़ कर
वक्त के हाथों मजबूर सभी होते है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
नारी सम्मान
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
जिस प्रकार लोहे को सांचे में ढालने पर उसका आकार बदल जाता ह
समाज में शिक्षा का वही स्थान है जो शरीर में ऑक्सीजन का।
There is nothing wrong with slowness. All around you in natu
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
*तानाशाहों को जब देखा, डरते अच्छा लगता है 【हिंदी गजल/गीतिका】
इश्क़ के नाम पर धोखा मिला करता है यहां।
हमारे बिना तुम, जी नहीं सकोगे
■ पहले आवेदन (याचना) करो। फिर जुगाड़ लगाओ और पाओ सम्मान छाप प
अधूरे रह गये जो स्वप्न वो पूरे करेंगे
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
मोमबत्ती की रौशनी की तरह,
!! राम जीवित रहे !!
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी