अभिमान करे काया का , काया काँच समान।
मैं अकेली हूँ...
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
झूठ की लहरों में हूं उलझा, मैं अकेला मझधार में।
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
"जमीं छोड़ आसमां चला गया ll
सारे गिले-शिकवे भुलाकर...
- अपनो पर जब स्वार्थ हावी हो जाए -