24-खुद के लहू से सींच के पैदा करूँ अनाज
उपयोग करके फेंको वो पैजा़र मैं नहीं
ये बात याद रखना कि बेकार मैं नहीं
खुद के लहू से सींच के पैदा करूँ अनाज
और भाव भी लगाने का हक़दार मैं नहीं
हर क़तरा मेरे ख़ून का आए वतन के काम
इससे ज़ियादा का तो तलबगार मैं नहीं
सबसे अज़ीज़ है तू दिल-ओ-जान वार दूँ
जब चाहे आज़मा ले अदाकार मैं नहीं
हर एक फ़ैसला मेरा पत्थर की है लकीर
झुक जाऊँ तेरे शोर से सरकार मैं नहीं
मेरे क़लम से आते हैं दुनिया में इंक़िलाब
साहित्य का सिपाही हूँ तलवार मैं नहीं
~ अजय कुमार ‘विमल’