22. शरीक-ए-हयात
जीने के लिए कुछ ख़्वाहिशात रहने दे।
धड़कने के लिए कुछ जज़्बात रहने दे।।
मेरी ज़िंदगी का हर पल हो तुम्हारे नाम।
इस वास्ते मुझ में तेरे ख़यालात रहने दे।।
तेरे इश्क़ में जो मुब्तला है ये दिल मेरा ।
तो मुझ में बिगड़े ये मेरे हालात रहने दे।।
तेरा दिल बतौर अमानत दे भी दे मुझे ।
मेरी इस फ़रियाद को तू ख़ैरात रहने दे।।
तुझे शरीक किया है अपनी हयात में ।
ख़ुद को मेरी शरीक-ए-हयात रहने दे।।
… मो• एहतेशाम अहमद
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया