22) भ्रम
राहे-उल्फत में सहनी पड़ेंगी दुश्वारियां भी,
पाक मुहब्बत का इक इम्तिहान होगा यह भी।
अपनी तो फिक्र नहीं कोई मुझे,
बिछुड़ कर भी दिल तुम्हारा ही रहेगा हरदम,
तुम्हारा ही साया ढूँढ़ेगा यह हर सू हरदम।
महफिल या तन्हाई, खुशी या गम,
तुम्हारा ही नाम लेगा यह हरदम।
तुम्हारा मगर ज़िक्र होगा दुश्वार मुझे महफिल में,
इकरार-ए-मुहब्बत भी दुश्वार रहा तुम्हारे लिए।
काश !
करीब होते हुए भी तुम दूर न होते कभी,
मिल कर तुम बिछुड़े न होते कभी,
अपनी मुहब्बत का यकीं दिलाया होता कभी,
दावा किया होता मुझसे मुहब्बत का कभी।
सहारा मिल जाता इस खाकसार को ज़िंदगी भर के लिए।
मगर मुहब्बत की खातिर रखेंगे भ्रम तुम्हारी मुहब्बत का,
मर-मर कर जीने की बनिस्बत
अब गले लगाया मौत को तुम्हारी ख़ातिर
तुम्हारी यादों का सहारा लिए।
तुम भी ‘गर अफसाने सुनो
अपनी मुहब्बत के
मेरे मरने के बाद,
भ्रम को भ्रम ही रहने देना
तोड़ना मत।
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नेहा शर्मा ‘नेह’