(23) गिले- शिकवे
गीले – शिकवे बहुत कर,
लिए एक दूसरे से।
चलो अब मोहबत,
कि बारी है इस से,
ही तो सब चलती दुनिया दारी है।
मुंह मोड़- मोड़ कर कब तक जिओगे,
कब जिंदगी ख़तम हो जाए,
कुछ पता नहीं , फिर एक- दूसरे,
को मिस यू- मिस यू कहकर रोओगे।
क्या फायदा बाद में रोने का,
चलो आज चलते हैं।
और सभी अपने रिश्तों की,
दूरियां ख़तम करते हैं।
इंसान का एक पल,
का भरोसा नहीं।
फिर क्यू हर बात,
पर तू- तू , मै- मै करते हैं।
चलो आज हम, अपने सभी
गीले- शिकवे दूर करते हैं।