21) इल्तिजा
एक जज़ीरे की मानिंद है यह दिल मेरा,
आते हैं लोग चले जाते हैं,
छोड़ जाते हैं यहाँ अपनी कड़वी-मीठी याद।
औरों की तरह तुमने भी तो
यही किया इसके साथ,
आए चुपके से, गए ख़ामोशी से…
अहसास तब हुआ मुझे
तड़पा दिया जब तुम्हारी याद ने दिल को।
याद नहीं, यादों का हुजूम
कड़वी भी, मीठी भी,
तुम्हें क्या दिया मैंने, याद नहीं।
शायद वक्त ही न मिला कुछ दे सकने का,
भर देती वरना तुम्हारा दामन यादों से,
सिर्फ मीठी यादों से, खुशियों से,
ताकि भुला न पाते तुम मुझे
कोशिश करने पर भी।
अब सोचती हूं
मेरे पास तो बहुत कुछ है
तुम्हें याद करने को,
तुम किस बुनियाद पर याद करोगे मुझे !!
गम नहीं ‘गर भूल जाओ तुम,
बस इक इल्तिजा कबूल कर लो मेरी…
मिल जाएं ‘गर कहीं भूले से फिर हम तुम,
मुँह मत फेर लेना,
इंकार मत कर देना पहचानने से तुम।
वरना तुम्हारी जुदाई तो सह ली इस दिल ने,
तुम्हारी बदली नज़र नहीं सह पाएगा यह,
टूट जाएगा सदा किए बिना यह।
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नेहा शर्मा ‘नेह’