2018 का समापन नववर्ष का आगाज़ है,
जाते जाते साल अठारह
एक संदेशा देती जा,
हो न कोई अकाल मौत
जाते जाते इतनी अक्ल देती जा.
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हो न कभी धर्म में हानि,
जीवन में आस्था पैदा करती जा,
ऊंच नीच के सब भेद मिटें,
अंधविश्वास पाखंड को लेती जा.
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होता नहीं कोई धर्म से श्रेष्ठ,
कर्मों में आधार गति समझाती जा,
शेष बचे न कुकर्म कुकर्तत्य,
इतनी जिम्मेदारी समझाती जा.
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अठारह का समापन,
उन्नीसवीं का आगाज़ है,
कल भी आज था(भूतकाल)
कल भी आज होगा(भविष्य)
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सपना लेकर आई थी,
हकीकत बन जाती जा,
पैगाम नूतन थे कभी,
आज इतिहास के पन्नों में कैद है
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डॉ_महेन्द्र