20) दिल
ऐ दिले-नादान
क्यूँ मुज़्तरिब है इस कदर !!
क्यूँ ख़ुद भी और मुझे भी
सुकून नहीं लेने देता !!
खुदा के वास्ते न कर याद उसे,
फुरसत नहीं एक लम्हा भी
तुझे याद करने की जिसे,
एक दफा मुड़ के देखना भी
गवारा नहीं जिसे,
दो लफ्ज़ कहना भी भारी है जिसे।
क्यूँ रोता है फिर उसकी खातिर !!
तुझसे बेहतर तो हैं यह आंखें
सहरा की मानिंद हैं जो
आँसू भी सूख चुके हैं अब तो इन आँखों में।
तू भी क्यूँ सबक नहीं लेता इनसे?
सब्र कर
तेरा सब्र ही शायद बन जाए बेसब्री उसकी,
वह भी तेरी तरह बेचैन हो उठे,
उसे भी शायद ज़रूरत पड़ जाए कभी तेरी।
हां, होगी
उसे भी होगी तेरी ज़रूरत कभी,
तड़पेगा उसका भी दिल तेरी तरह कभी।
दर्दे-दिल सहा है जिस तरह
यह दर्द भी सह जा उसी तरह।
ऐ दिले-नादान,
मत बेकरार हो इस कदर।
—————–
नेहा शर्मा ‘नेह’