2 _ लोग
2 _ लोग
बारिश या धूप कौन है बड़ा
बस तुलना करते जाते लोग ,
कमियों को गुनाह बना कर
जाने क्या बतियाते लोग …
साक्षी होकर भी हर दुख का
खामोश खड़े रह जाते लोग
सीता को भी कहाँ था बक्शा
मिटा न सदियों से ये रोग …
गुरूर बनी जिनकी तलवारें
सूई को भूल गये वो लोग
कुछ सीना कोई जोड लगाना
रहा न सूई का उपियोग …
प्रवृत्तियां कुछ ऐसे बदली
रहा नहीं प्रकृति से योग
रूठ जायेगी एक दिन पृथ्वी
करते रहे जो दुरूपयोग …
कोई थाम न ले उनकी ऊंगली
अपने हाथ कटवाते लोग
लिस्ट ज़मी से आसमान तक
जाने क्या क्या चाहते लोग …
कमियां ज़रूर रही होंगी
यूँ ही नहीं ठुकराते लोग ,
मन गंगा और प्यार समंदर
क्यूँ नहीं समझ पाते लोग …
– क्षमा ऊर्मिला