(19)
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मन में रक्खें बैर की भावना ।
दुष्ट है वो, संत नहीं है ।।
सीमित रखिये विषय-वासना ।
इच्छाओं का अंत नहीं है ।।
व्यर्थ है फिर ज्ञान तुम्हारा।
सोच में जब तर्क नहीं है।।
रिक्त है जो मानवता से ।
ईश्वर का वो भक्त नहीं है।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद