1857 की क्रांति…
अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए,
सत्ता-शासन के अधिकार छिने थे,
मिले कुँवर जी,नाना साहब ओर तात्यां टोपे,
1857 की खूनी-क्रांति का आगाज़ हुआ ।
एक तरफ़ से झाँसी की रानी,
लखनऊ से बेग़म हज़रत महल थी,
मेरठ से धनसिंह गुर्जर ने
बिजनौर में बख़्त खान ने आगाज़ किया ।
झाँसी हड़प ली हड़प नीति से,
नाना से बिठूर गया था,
मिले सभी जब ग्वालियर में,
अंग्रेज मित्र सिंधिया को अपदस्थ किया ।
जगदीशपुर में कुँवर जी ने,
अपनी बाजू गँवाई थी,
बिठूर हारकर नाना ने,
नेपाली जंगल में वास किया ।
कुछ ग़द्दार बने अपने,
गोरों का साथ दिया था,
झाँसी,लखनऊ,मेरठ,दिल्ली ने,
अपने लालों का बलिदान दिया ।
जन-जन तक आवाज़ पहुँचाई,
वो योद्धा वीर शहीद कहलाये थे,
गोरों से आज़ादी पाने को दिल्ली ने,
असंख्य मिर्जाओं को कुर्बान किया ।