(18) भक्ति
मीरा बाई जी कुछ यूं चली,
भक्ति की और।
श्री कृष्ण जी के बिना,
न देखा कोई और।
गली- गली कुछ यूं,
घूमती चली गई।
न परवाह की जमाने,
कि बस श्री कृष्ण जी को ढूंढती रही।
राणा ने लाख अर्चने डाली,
पर वो तो हो गई थी मतवाली।
बावरी कुछ यूं हो बैठी,
“श्याम “तेरे प्यार में,
कि मीरा से मीरा बाई बन गई तेरे दीदार में।
जोगिन बन गई ,
सुध- बुध सब भूल गई।
राज- पाठ सब त्याग दिया,
खुद को कान्हा के श्री चरणों में लगा दिया।
ऐसी बनी भक्त वो दीवानी,
भक्ति की बना दी एक ,
मिसाल अनजानी।