18- ऐ भारत में रहने वालों
एक बरस मैं खोयी रहती, जाति – धर्म के नारों में
याद मुझे करता है भारत, यदा – कदा जयकारों में
उसी समय बस मुस्काने को, बाहर मैं तो आती हूँ
देख दुर्दशा इस भारत की, दुख से मैं मर जाती हूँ
घिर आये संकट के बादल, जागो और निदान करो
ऐ भारत में रहने वालों, मत मेरा अपमान करो
कोई कहता हिन्दू हूँ मैं, कोई मुस्लिम कहता है
आपस के इन झगड़ों से नित, भाईचारा मरता है
धरा बुद्ध औ महावीर की, बात पुनः वो कहती है
जाने क्यों ये भोली जनता, जाति-धर्म पर लड़ती है
पुनः दिवस आया बलिदानी, इसका कुछ तो ध्यान करो
ऐ भारत में रहने वालों, मत मेरा अपमान करो
भूखमरी लाचारी अब भी, बनी यहाँ मज़बूरी है
ऊँच-नीच की खाईं से ही, समरसता से दूरी है
चोर, लुटेरे, व्यभिचारी सब, पहुँच रहे हैं संसद में
भ्रष्टाचारी लगे हुए हैं, देश लूट की मकसद में
लोभ-मोह को त्याग यहाँ पे, सबका ही उत्थान करो
ऐ भारत में रहने वालों, मत मेरा अपमान करो
कुर्बानी पर तुम्हें मिली हूँ, मुझको नहीं गवाना तुम
मेरी कीमत समझो लोगों, गा कर याद दिलाना तुम
मुझे गुलामी जकड़ी रहती, मैं तो उसकी आदी हूँ
लेकिन मुझको तुम अपना लो, सबकी मैं आजादी हूँ
मन के सारे दम्भ मिटाकर, देश गीत का गान करो
ऐ भारत में रहने वालों, मत मेरा अपमान करो
अजय कुमार मौर्य ‘विमल’