18. एक मरहम
जब दर्द का सितम होता है।
तो क़लम का साथ होता है।।
तन्हाई जब भी डसती है मुझे।
लफ़्ज़ों का तब जन्म होता है।।
जब कोई सुनता नहीं है मुझे।
आँसुओं से वरक़ नम होता है।।
दिल जब हो जाता है ज़ख्मी।
ज़ुबाँ तब मेरा ज़ख़्म होता है।।
उमड़ती हैं जब लहरें दर्द की।
तब ये दर्द कलमबंद होता है।।
अब सोचना भी क्या है इतना।
लफ्ज़ ख़ुद एक मरहम होता है।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया