16. . वो हमदर्दी !
कोई अब हमदर्दी जताता नहीं।
दिल से दिल अब मिलाता नहीं।।
सारे अपने हो गये अब पराये से।
प्यार से भी अब कोई रुलाता नहीं।।
कल जो हाथ बढ़ते थे मदद को।
वो हाथ आज कोई बढ़ाता नहीं।।
एक चोट पे ही रो देती थीं आँखें।
अब वो आँसूं कोई बहाता नहीं।।
हर दिल मानो पत्थर सा हो गया।
इस पत्थर को कोई पिघलाता नहीं।।
जाने कौन सा तकब्बुर है लोगों में।
ख़ौफ़े ख़ुदा उन्हें कोई दिखाता नहीं।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया