16. *माँ! मुझे क्यों छोड़ गई*
उम्र गुजरती गई और मैं सोचती ही रह गई,
मेरी माँ, क्यूँ इतनी जल्दी मुझ से दूर चली गई।
रास्तें मिलतें गयें और मैं बढ़ती गई,
किस मंजिल की तलाश में, मैं दूर तक चली गई।
मुश्किलें बहुत आई, पर मैं कभी डरी नहीं
पर जिंदगी की शाम में, अब क्यूँ घबरा गई।
ये जिंदगी का खेल है या जिंदगी ही खेल है,
हर कदम पर जीत कर,क्यूँ अब मैं हार गई।
माँ की उंगली पकड़, कभी नहीं चली दो कदम,
इस जिंदगी की दौड़ में, कैसे मैं दूर तक आ गई।
मेरी जिंदगी की हकीकत है फकत यही..
खुशियों में भूली तुम्हें, दु:खों में माँ तुम याद आ गई।
सोचती हूँ अक्सर, क्या गुनाह हुआ मुझसे..
मुझे दुनिया दिखाकर, क्यूँ तुम दुनिया से चली गई।
यह कैसी सजा, माँ! मुझे मिल गई..
जिस जहां तुम गई, उसी राह मेरी बेटी भी चली गई।
माना हासिल हैं, सब ऐशो-आराम ‘मधु’
लेकिन तेरी चाहत, कभी ना दिल से गई।
अक्सर सोचती हूँ मैं…
माँ! क्यों तुम मुझे छोड़ गई।।