(16) आज़ादी पर
कहा मित्र ने आज़ादी पर
कोई कविता लिख दो भाई !
मैं तो नहीं मंच का कवि हूँ
आज़ादी पर कैसे लिख दूँ ?
कुछ भी मेरे समझ न आयी
क्या जवाब मैं दे दूँ भाई
करूँ प्रशंसा या कि बुराई
कुछ भी मेरे समझ न आयी |
आज़ादी के पहले क्या था
तब तो मैं जग में भी नहीं था
देश दूसरे गया न भाई
किससे तुलना कर लूँ भाई
कुछ भी मेरे समझ न आयी
करूँ प्रशंसा या की बुराई !
देश कहाँ तक कितना फैला
आज़ादी के पहले भाई
तब के ब्रिटिश राज्य का नक्शा
जरा उठा के देखो भाई
टुकड़े टुकड़े देश बँट गया
टुकड़ा एक मिला बस भाई
उसके हित भी, इधर उधर
जानें, इज्जत सभी गंवाई
यही चाहती थी क्या जनता ?
या नेताओं की थी ढिठाई ?
तुम सब जानो , हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
आज़ादी से आरक्षण का
दान मिला था कितना भारी
युग हजार से पंडित जी ने
शूद्रों को चूसा था भाई
अब हम बदला लेंगें उनसे
भीख माँगते पड़ें दिखाई
युग हजार तो आरक्षण का
अपना भी हक़ होये भाई
रुपया पांच दक्खिना लेते
सबको चूसे रहते भाई |
पंडित – घर पर रेड पड़ी तो
घंटा शंख मिले बस भाई |
अब असली पंडित आये हैं
निर्मल आशाराम हैं भाई
राम रहीम,वो डेरा वाले
योग सिखाते, जग गुरु भाई
क्या जवाब मैं दे दूँ भाई ?
तुम सब जानो , हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई
कुछ भी मेरे समझ न आयी
क्या जवाब मैं दे दूँ भाई |
आज़ादी के पंद्रह सालों
इतनी करी तरक्की भाई
पंचशील का नारा देकर
दुनिया के गुरु बन गए भाई
शस्त्रों की फैक्ट्री में हमने
आटा छलनी खूब बनायीं
चीन जबै हमला कर बैठा
फालिज पड़ा , गिरे हम भाई
इंसानों ने जान गंवाई
न उनके बाप, न उनके माई
धुंध शहीदी चिता की बढ़के
आसमान पे छायी भाई।
तब भी क्या हम संभले भाई
तुम सब जानो , हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई |
बचपन में गरीब होते थे ,
अध् तन ढांके, भूखे सोते
अब भी उनके लड़के देखो
मायें देखो, बहिनें देखो
कूड़ा बिनते , नाक चाटते
कूड़े में से चुन के खाते
भीख मांगते , गाली सुनते
कार पोंछते, सड़क पे सोते
पुण्य था उनको कुछ दे देना
आज वही है पाप कमाना
वही विदूषक जिसने उनको
देखा और आँख भर आयी
करूँ प्रशंसा या की बुराई
कुछ भी मेरे समझ न आयी
तुम सब जानो , हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
बचपन में अमीर होते थे
टाटा और बिड़ला होते थे
अब माल्या, नीरव होते हैं
देश छोड़ के भग जाते हैं
तब उनको शोषक कहते थे
अब उद्योगपति है भाई
पंद्रह लाख हर इक खाते में
आने वाले हैं अब भाई
ख़ुशी में हमने खीर बनायी
तुम भी आना खाने भाई
स्विस बैंक की जय हो भाई
खायेगा अब देश मलाई
तुम सब जानो , हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
कहते सुई नहीं बनती थी ,
पहले देश में अपने भाई
लेकिन हमने तो देखी थीं ,
रेलें, पुल, इमारतें भाई
सौ सौ सालों तक चलते थे
अब धड़ाम हो जातें भाई।
तुम सब जानो, हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
कहते हैं कुनबे के कुनबे
पहले हर घर घर होते थे
संस्कार, अनुशासन, दया
ममता , स्नेह, के घर होते थे
था तलाक का नाम नहीं ,
बच्चे न प्यार का हक़ खोते थे
अब तो टुटरूं तूँ, बस देखो
तीन जनों का घर होता है
हर आँखों पर मोबाइल का
चश्मा एक चढ़ा होता है
प्यार भला क्या जाने बच्चे
जो माँ के सीने में होता
शब्दों का बस खेल बसा ,
अब तो केवल हर मन होता
देश हुआ टुकड़े टुकड़े
परिवार हुए जर्रा ज़र्रा
नेता लड़ते, सड़क अदालत
नर नारी कुत्ता कुत्ता
मैं पागल, या देश बिचारा
तुम सब जानो, हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
अब तो हम मंगल पर भी
झंडा अपना फहरा आये हैं
कलुवा ने घूरे पर ही बिनकर
लेकिन चावल खाये हैं
बुलेट ट्रैन आने वाली है
हिरिया ने ख़ुदकुशी करी है
मध्यम वर्ग अमीर हुआ है
दीन और भी दीन हुआ है
जी सकता है , बढ़ सकता है
जो गरीब रखता नैतिकता
भ्रष्ट देश के हर मन में बस
रहे हमेशा कुंठा कटुता
क्या मगल पर पा पायेगा
जिसने आत्मा को मारा है
बुलेट ट्रैन से कहाँ जाएगा
घर और बच्चों को छोड़ा है
दिल कब तक व्हाट्स अप्प बहलाये
यदि माँ ने नफरत दे दी है
टेक्निक कहाँ देश पहुंचाए
नस में भरी भ्रष्टता यदि है
मुझे न पड़ती बात सुझाई
मुझे न पड़ती राह दिखाई
तुम सब जानो, हम क्या जानें
बोलो तो क्या लिख दें भाई ?
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम