15. मुहब्बत का वहम
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पे बस ज़ख़्म दिये।
ज़ख्म दिये भी तो नहीं कुछ कम दिये।।
ऐ ज़िन्दगी! जब भी तुझे लगाया गले से।
बदले में तू ने हमेशा मुझे सितम दिये।।
यक़ीन करूँ भी तो अब करूँ किस पे।
रिश्तों के नाम पे तू ने फ़क़त भ्रम दिये।।
ज़ुबाँ में अमृत लिये फिरते हैँ लोग यहाँ।
ज़हर दिल में घोल तू ने आँखें नम दिये।।
मुहब्बत के नाम पे ठगता है हर कोई।
जज़्बातों से खेलने को तू ने कसम दिये।।
बेवफ़ाई पा कर भी उम्मीद-ए-वफ़ा है।
पालने को तू ने क्या ख़ूब ये वहम दिये।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया