15 अगस्त
15अगस्त1947 की अर्द्ध-रात्रि,
जब भारत आज़ाद हुआ।
मुर्गे की बांग नही,
आज़ादी के जशन का बिगुल बजाया गया।
जंजीरो को तोडा मातृभूमि की,
स्वतंत्रता का तिरंगा लहराया गया।
लाल किले पर झंडा यू था लहरा रहा जैसे मुकुट पहन हमारी मातृभूमि की शान बढ़ा रहा।
जिसकी खातिर भगत सिंह,
सुखदेव और राजगुरु सूली पर थे लटके।
मंगल पांडेय, झांसी की रानी ने जिनके थे छक्के छुड़ाए।
उधेड़ फेका उन्हें आज हमने अपनी भूमि से।
चंद्र शेखर आज़ाद का हुआ सपना था साकार,
खुद ही को गोली थी मारी देश के नाम।
जब तिरंगा लहराया और कहा गया हमारा देश महान।
कई वीरों ने आज़ादी के लिए लहू था बहाया ,
शत-शत नमन उनको,
जिन्होंने हमे आज़ादी का सुरज दिखाया।
जिन वीरों ने था लहू बहाया,
तृप्त हो गया उनका जीवन सारा।
अम्बर से देख खुश हो रहे होंगे बनके तारा।
टूटी थी जंजीरे,
गुलामी खत्म हुई थी।
सबने चैन की सांस ली थी,
वापस जो मिली थी अपनी भूमि।
जय भारत।
भारती विकास(प्रीति)