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11 Jun 2023 · 1 min read

14- चेतना

चेतना

यह मानसून सब सूनसून पानी की इसमें बूंद नहीं।

वर्षा का स्वप्न सब देख रहे पर अभी कोई उम्मीद नहीं ।।

जन-जीवन जल को व्याकुल है पारा भी ऊपर सीमा पर

उपवन में सुमन सब सूख रहे है नहीं पन पर हे कोमल अंकुर।।

कहीं भारी वर्षा के तांड़व से बह जाते घर और छप्पर ।

फसलें भी कहीं बर्बाद हुई गिरते पर्वत सिर के ऊपर ।।

मोटरगाड़ी व पशुधन भी बह जाते सब जल धारा में।

विधि का विधान है अपरम्पार यह सोच-सोच मन हारा मैं ।।

कहीं धूप खिले कहीं वर्षा हो प्रकृति का खेल निराला है।

कहीं बर्फ गिरे कहीं सूखा हो कहीं जमता केवल पाला है ।।

कहीं तूफाँ के चक्रवात में महल-दुमहले उड़ जाते।

पर्वत की श्रृंखला गिरजाती न वृक्ष जमीं पर रह पाते।।

कहीं तांड़व अग्नि दिखलाती लग जाती आग बड़े वन में

कहीं बिजली गिरती पृथ्वी पर कहीं मृत्यु आती जीवन तें।।

यह देख-देख हैरान हूँ मैं ईश्वर का खेल निराला है।

कहीं तारा मण्डल चन्द्र प्रकाष कहीं सूर्य का उजियाला है।

ऋतुराज में कलियाँ खिलती हैं खिलते प्रसूनवन उपवन में।

हर मन उमंग से भर जाता खुशियाँ आती हैं जीवन में ।।

“दयानंद “

Language: Hindi
71 Views
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