(13) हुस्न – ए- दिदार
आज मेरी तबीयत कुछ ना- साज सी है,
न जाने क्यों इस दिल में एक आह – सी है।
पर जब हुए हुस्न- ए- दीदार,
तो ये दिल हो गया बागो- बाग।
है इंतजार मुझे ईद का,
क्योंकि उस दिन चांद आएगा।
लेकिन चांद उस दिन फलक पर नहीं,
जमीं पर मेरे महबूब में नजर आएगा।
हुस्न वो जादू है जो चल जाए तो,
दीवाना कर देता है।
पर न जाने क्यों ये हुस्न वालो को,
कम दिखाई देता है।
कदर नहीं मेरे हुस्न- ए महबूब को,
मेरी पर मुझे उन पर नाज़ है।
चर्चे हैं उनकी सुंदरता के ,
यही बस मेरे लिए ताज है।
यकीन है मुझे उन पर वो एक दिन,
मेरी मोहब्ब्त के गुलाम होंगे।
पर उस दिन पता नहीं हम किस,
कब्र के मेहमान होंगे।