13. आज़ाद ग़ज़ल
दिल से दिल को गले लग जाना ही था।
दूर जा कर भी पास चले आना ही था।।
कसमें खा कर भी इश्क़ जो मुकर गया।
लाख मुकरा पर इश्क़ तो निभाना ही था।।
ज़िन्दगी थी अधूरी जो तेरे बिन हर पल।
जीना तो लगता बस एक बहाना ही था।।
क़ुदरत की इस साज़िश तो तू देखो ज़रा।
तुझे मुझ से, मुझे तुझ से मिलाना ही था।।
बहुत उड़े बन कर पंछी खुले आसमान में।
दोनों को बसाना अब आशियाना ही था।।
ख़ुदाई तोहफ़ा बन कर आये तुम मेरे लिये।
ज़िन्दगी में मेरी फिर बहार तो आना ही था।।
मेरी ख़ामियों को तुम ने किया दरकिनार।
तेरी ग़लतियों को मुझे भूल जाना ही था।।
दिक्कतें लाख आयीं तुम्हारे रास्ते में अक्सर।
फिर भी एहतेशाम तुझे तो सह जाना ही था।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया