12) मुमकिन नहीं
अक्सर तुम्हारे ख़्यालों में खोया दिल,
यह नामुराद दिल सोचता है अक्सर…
नामुमकिन तो नहीं
मगर मुमकिन भी नहीं
कि तुम आओ मिलने हमें मगर
न मिलने पर मायूस न हो तुम…
मुमकिन नहीं
कि उस वस्ल की घड़ी
हम हों, तुम हो,
और हो यह भीनी-भीनी फ़िज़ा…
कि तुम्हारी खुशामदीद पर मारे ख़ुशी के
तुमसे लिपट जाएँ हम।
मुमकिन यह भी नहीं
कि तन्हाई के नामुराद लम्हे तड़पाएं न कभी,
कि तन्हाई के नामुराद लम्हे आएं ही न कभी।
मुमकिन नहीं
कि मिला दे खुदा हमेशा-हमेशा के लिए हमें।
हा!! मुमकिन नहीं
कि तुम्हारी आँख के आँसू पी सकें लबों से हम,
कि हमें, हमारा दर्द सीने में छुपा लो तुम।
नामुमकिन तो नहीं मगर मुमकिन भी नहीं
कि बारिश की फुहार हो,
तुम हो, हम हों और हाथ में हाथ हो।
और कुछ हो तो
हो रात की साँय-साँय।
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नेहा शर्मा ‘नेह’