11) “कोरोना एक सबक़”
कोरोना की कहानी..हम सब की है ज़ुबानी।
डर की चादर जो ओढ़ कर पहनी,
है हैरानी और परेशानी।
कोरोना का सबक़ तो इतना, सिखा रहा कितना।
रोग है तन का, बीमार हुआ मन का।
नफ़रत का, द्वेष का, घड़ा है भरा,
सोचा ना समझा..पर निकल पड़ा।
कैसे होगा बचाव, संघर्ष है बड़ा,
अपना,पराया, सब रहा धरा का धरा,
समय का पहिया देखो..चलता चला।
समय ने खेल ऐसा खेला,
हम सब ने कोरोना झेला।
जीने की इच्छा, अपनों का मोह,
अच्छा सोच, अच्छा ही हो।
आया है कोरोना, जाएगा कोरोना,
परिश्रम को बढ़ाना है।
दिवार करो..ना की, तोड़ कर,
स्वस्थ मन का कोना बसाना है।
सीख तो कड़ी, पर…खुद को सिखा कर,
तन को दृढ़ एवम् मन को स्थिर बनाना है।
बीस,इक्कीस, बाईस, तेईस और अब चौबीस,
वर्षों का खेल चलता जा रहा,
कोरोना के भय को जीत कर,
वक़्त की निज़ाकत को समझा रहा।
स्वस्थ हो मन, स्वस्थ हो तन,
जीवन हो बेहतर और बेहतर बनाना है।।
✍🏻स्व-रचित/मौलिक
सपना अरोरा ।