1072 इश्क का जिक्र
इश्क का जिक्र नहीं होता ।
इसकी तो खुशबू फैलती है ।
खुशबू जब फैलती है तो ,
जिक्र नहीं सिर्फ एहसास होता है।
इश्क के एहसास में फिर,
इक रूहानियत सी होती है।
खो जाते हैं शून्य में फिर,
कहाँ कुछ और नजर आता है।
इश्क में फिर अपनी ही दुनिया,
अपना ही एक जहान होता है।
आशिक ही फिर ख्वाबों में,
आशिक ही सारा जहान होता है।
आशिकों की सूरत ही फिर ,
उसका हाल बयान करती है।
इश्क फिर छुपाए नहीं छुपता,
इसका चर्चा सरेआम होता है।