10) “वसीयत”
दुःख सुख की कहानी,वसीयत की ज़ुबानी।
मैंने मानी तुमने मानी, क्या यह एक नादानी?
वसीयत लिख दूँ एक ही नसीहत पे,
प्यार ही प्यार उड़ेल दिया काग़ज़ में नियत से।
क्या क्या बचाया है ज़िंदगी के पन्नों ने,
दिल और जिगर का हिसाब इन दोनो में।
कोख मेरी प्यारी जिसमें जान थी वारी,
लहू से सींचा प्यार,जन्नत देखी आँखों में सारी।
वसीयत नहीं है काग़ज़ के पन्नों की मोहताज,
दिल है बस्ती कतरे कतरे में बसा कल और आज।
वसीयत काग़ज़ का पुर्ज़ा बन जाता ख़ास,
जब दुआ वं ख़ुदा मिल जाएँ पास पास।
चंद अल्फ़ाज़ों की वसीयत जला देना साथ
ग़र
दिख जाए ईर्षा, स्वार्थ,द्वेष और क्रोध की दीवार॥
दुःख सुख की कहानी,वसीयत की ज़ुबानी।
मैंने मानी तुमने मानी, क्या यह एक नादानी?
✍🏻स्व-रचित/मौलिक
सपना अरोरा ।