(1) मैं जिन्दगी हूँ !
मैं उफनती धार हूँ , मैं जिन्दगी हूँ !
मैं नहीं साहिल , हूँ मैं मझधार , मैं बस जिन्दगी हूँ !
डूबता सूरज नहाकर मेरे जल में, फिर उठेगा
याद का दीपक सुनहरी सांझ में फिर से जलेगा
आंसुओं की धार भी मुस्कान में ढलती रहेगी
और मुस्कानों की खेती अश्रु से सिंचती रहेगी
हर उपेक्षित भावना फिर से जगा दूँ, जिन्दगी हूँ
मैं उफनती धार हूँ , मैं जिन्दगी हूँ |
पर्वतों के ह्रदय से निर्झर व नद पिघला करेंगे
सिंधु की बड़वाग्नि से बहु पोत दह दह दह दहेंगे
काल के विकराल हाथों भूधरों का धूल बनना
जल प्रलय के बाद पर मनु सृष्टि फिर से नव रचेंगे
शिशिर- पतझड़ बाद, मैं मधुमास दे दूँ |
मैं उफनती धार हूँ , मैं जिन्दगी हूँ |
अश्रुवों की धार कोमें खिलखिलाहट सहज दे दूँ
पंगु को गिरि पर चढ़ा दूँ ,मूक को वाचाल कर दूँ
और आभासी असंभव को सहज संभव बना दूँ
दिवस को मैं रात्रि तो मैं रात्रि को भी प्रात कर दूँ |
मैं नहीं रोके से रुक सकती कभी , मैं जिंदगी हूँ |
मैं उफनती धार हूँ , मैं जिंदगी हूँ ||
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता :(सत्य) किशोर निगम