04-दीप तुम्हें ।
निर्ममता के कुटिल विषाद सह,दीप तुम्हे भेंट ये जीवन।
धवल ज्योति कर जलते रहना,है चिराग तुमसे अंत मिलन ।१।
मश्त पवन के झोंको से ,होगा तुमसे पल पल पाला।
पर काल वेला से पूर्व कोई , कर न सकेगा पंथ काला।।
लो वार चला आज में लौ,मेरे सपूत मेरे अनन्त धन ।
निर्ममता के ———————————————।२।
टपकता है स्वार्थ जब तक ,है चाहत बिहंसती जीभ पर
तम माँगता है उजाला सतत ,निज कर हथेलीभीख भर
फूंक देता प्राण फिर सविष पापी,कल फिर जलता ये चिर जीवन ।
निर्ममता के ———————————————-।३।
बात एक और है समझ की , हे चिर दीप लो जान तुम
वात बंधना के जाल सघन,लो ह्रदय हर स्वास बुन ।
जल न जाए रक्त तन का ,जलते रहनाचिर बाती बन।
निर्ममता के———————————————–।४।
है सत्य यह भी की प्रिय , अन्धकार नहीं चूक सकता
मर मिटोगे कर उजाला ,पर अंत में है थूक भगता।
यही उजाले के लिए है, तिमिरमयी तम का चलन ।
निर्ममता के ———————————————–।५।