03-छ्न्द परिंदों के ।
बैठ पंछियों की पाँति , यह छ्न्द गा रही ।
आसरे की छाँव से , दुर्गन्ध आ रही ।।
घूम आये क्षितिज पार , न मिला कुंद है ।
नीलमयी आकाश में, ये फैली धुंध है ।।
मंजिल है कहाँ ,आवाज ये स्वछंद आ रही।।1।
आज प्रातः में ही, गगन लाल हो गया ।
शायद शौर्य पुंज भी , कंगाल हो गया ।।
मलयजी बयार ले ,बहु रन्ध्र आ रही ।
बैठ पंछियों की पाँति ,यह छ्न्द गा रही ।2।
भूख का हर बीज , जलीय शैवाल हो गया
प्रश्न के इस शोध का , सवाल हो गया ।
कोई युक्ति भी ना भ्रात ,पसन्द आ रही ।
बैठ पंछियों की ——————————-।3।
सुखी सी इस डाल को भी, हैं कीड़े खा रहे ।
सहारे के पैर भी तो , उखडें हैं जा रहे ।
दुर्गति तेज हो , वह अति अंध आ रही ।
बैठ पंछियों की ———————————।4।
लग रहा अर्थियों का , वितान सज गया ।
अन्धेरे की आँख में है ,बिगुल बज गया ।
अनागतों के झुंड़ ले , बहु फन्द आ रही ।
बैठ पंछियों की ———––——————–।5।
अपनी इन मुर्झाहटों में , ना हीँ नींद है ।
अग्नि के पेट का , बढ़ रहा सिंधु है ।
वेकली रह रह के , मचाती द्विन्द जा रही ।
बैठ पंछियों की ———————————।6।