02- जाग ।
“सोयेगा कब तक , ओ शेषनाग ।
बीत गई सदियां ,गुजर गई रातें ,
सहते पल पल, चोटें अघातें
कोई तो मृदु सा छ्न्द सुना देआज ।1।
युग विकसित हुई फिर भी रेंगन
घूमता फिरता , पथ पर वमन ।
कहाँ गई तड़पन,कहाँ गया सब राग ।2।
छूता हूँ तन , पर न होता असर
हुंकार दिखा दे ,न तू जहर
गलने दे न तन ,दिखा दे न अपना राग।3।
सुख गया क्या रक्त धमनी का
ध्यान नहीं है क्या अवनि का
गरज कर दिखा दे, जोशीली आवाज।4 ।
अन्याय घूमता फिरता ,ग़लीयों में
भृस्टाचार मश्त है , रंगरलियों में
कुरुक्षेत्र में रहकर , जले धरती का सुहाग।5।
लक्ष्य भेद दो , पथ पर निर्भय
करो न लज्ज़ा ,तन मन संशय
मार भगाओ हत्यारों को,रही न जिनको लाज।6।
अपना अरमान , संचित कर लो
सुहाग अवनि का ,रंजित कर दो
लिप्सानल अरि को, पत्त्थर बन कर लाग ।7।