“अष्टांग योग”
“अष्टांग योग”
योगी बनिये अपने जीवन में सदा,
योग ही है, आधार अब जीवन का,
जहां योग है , नही वहां कोई रोग है,
ये भारत से ही निकला, एक प्रयोग है।
अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य
और अपरिग्रह;
पांच ही मनुष्य जीवन का,
निर्धारित आचार-विचार है,
ये सब “यम” का व्यवहार है।
सिर्फ “नियम” ही लाए हममें संयम,
जीवन में इसके कई प्रावधान है,
स्वाध्याय और आस्था से पहले,
शौच और संतोष इसके विधान है।
सदा बैठिए, अपने को संभाल;
बैठिए न कभी यों ही पांव पसार,
स्थिर और सुखपूर्वक रखिए शरीर,
“आसन” सिखाता हमें यही व्यवहार।
आप सदा शुद्ध वायु लीजिए,
पेड़ पौधे को भी कुछ दीजिए,
सीधे श्वास खींचिए,कुछ रोक,
बाहर उसे फेकिए,बिना टोक,
ये “प्राणायाम”ही रोज कीजिए।
अपने मन को कभी न भटकाईये,
सदा अपने को अंतर्मुखी बनाइये,
इंद्रियों को अपने वश में लाइये,
“प्रत्याहार” को जीवन में अपनाइये।
चित्त न लगे जहां मन भटके वहां,
चित्त को सदा सही जगह लगाइये,
अब आप चित्तरंजन बने हमेशा,
अपने में ऐसी “धारणा” ही लाईये
जब चित्त लगे,आपका सही जगह;
चित्त से न वंचित हो, बिना वजह,
जब ना हो आपको कोई परेशानी,
तब “ध्यान” में ही होता कोई ज्ञानी।
चित्त न हो जब आपका कभी मलिन,
आप हो जाएं सदा खुद में ही लीन,
जीवन का हो सदा चिंतन से वास्ता,
तो समझो, है “समाधि”की अवस्था।
अगर चाहे कोई,जीवन में न हो वियोग,
होगा कल्याण उसका, नही ये कोई संयोग,
जो मानव कर ले जीवन में ये प्रयोग,
ये सब मिलकर ही कहलाता अष्टांग योग।
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स्वरचित सह मौलिक
….. ✍️पंकज कर्ण
………….कटिहार।
२१/६/२०२१