?दोहे?
??दोहे??
आनंद छिपा उर घना , खोजो करके ध्यान।
गन्ना भीतर रस लिए , चूसो तब पहचान।।//1//
प्यार रूह का दे सिला , संग रहें या दूर।
नभ में शोभित चाँद है , धरा चाँदनी नूर।।//2//
पर लाचारी पर हँसें , मूर्ख हुए वो लोग।
धूप-छाँव सम भाग्य है , पल बदले संयोग।।//3//
ठोकर खाकर सीख ली , चढ़े विजय सोपान।
हार मान बैठे अगर , बने रहे नादान।।//4//
बने आम ही खास है , लक्ष्य चले जो ठान।
लक्ष्य हीन का ठौर है , कटी पतंग समान।।//5//
दौलत खातिर झुक गया , बेचा स्वयं जमीर।
शर्म गयी तो समझिए , सूखा नैना नीर।।//6//
दया धर्म उर राखिए , इंसानी परिमाण।
जो जन इनसे दूर है , समझो वो पाषाण।।//7//
??आर.एस.’प्रीतम’??