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31 May 2017 · 1 min read

?आत्मा : एक मुसाफिर ?

आत्मा : एक मुसाफिर

चला गया हँसता एक मुसाफिर
रोता लौटा जग में कोई और ।।
आते रहते हैं सैकडों इसी तरह
चलता रहता निरंतर ये दौर ।।

जीवन जीव की गति ना समझे
उलझा रहता जग की माया में ।।
जीवन उसके बस की चीज़ नहीं
छटपटाता रहता निज काया में ।।

बुद्धिमान समझ के इसकी चाल
गोते लगाते हर्ष की नदियों में ।।
ना-समझ हैं कुछ तो जग में ऐसे
भटकते रहते ईश की गलियों में ।।

हो के राम भी अवतारी जगत में
मन खोल के दु:ख-सुख को खेला ।।
मुरारी भी यही संदेश दिया हमें
हर कष्टों को निज सिर पर झेला ।।

नचिकेता को यमराज ने बताया
आत्म-ज्ञान का रहस्य समझाया ।।
राम, कृष्ण सबने मृत्यु को पाया
ज्ञानी भी अज्ञानी खुद को पाया ।।

है मुसाफिर इस अंबर का आत्मा
ये तन हमारा इसका प्रिय ठौर ।।
प्राणी भी मुसाफिर हैं इस जग में
ठौर नहीं है पृथ्वी-सा कहीं और ।।

================
दिनेश एल० “जैहिंद”
15. 05. 2017

Language: Hindi
245 Views

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