? मुखरित मौन ?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
*एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त
# मुखरित मौन #
मौन अब खिलने लगा है
कपकपाती शीत है जा रही
बसन्त बसन्ती फॉग में
पल पल ढलने लगा है ।।
नीड़ जो हो गये बेजान से
कोकिला के स्वर से गुंजित
रागिनी अमवा मधुर सुगंध
दे , आवाहन पर आवाहन
देने लगा है , तितलियाँ का
आकर्षण बन रहा है ।।
पुष्प सुबह की औश स्निग्धा
कामिनी संग से लजाये
आती जाती कोमलांगियों को
अपनी चितवन दिखा कर
यकायक छल रहा है ।।
मौन अब खिलने लगा है
कपकपाती शीत है जा रही
बसन्त बसन्ती फॉग में
पल पल ढलने लगा है ।।