? तफ़सील?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री , ??एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
? तफ़सील ?
शक्लोसूरत की रीत को अब भुलाया जाए
एक रिश्ता प्यार का इंसान से चलाया जाए ।।
मुझे लगता है कि सब कोई बात ये जानते हैं
अब यही पैगाम लिखित में फैलाया जाए ।।
तुम कोई ग़ैर हो किसी से भी ऐसा न कहकर
क्यूँ न हर इंसान को सीने से लगाया जाए ।।
कोई काला कोई भूरा तो कोई होगा रंग गोरा लिए
रंग की इस पुरानी परंपरा को दिल से भुलाया जाए ।।
बहुत देर कर दी मैंने बात इतनी सी समझते हुये मौला
माफ़ करने की वजह को भी रोज़ की इबादत में शामिल कराया जाए ।।
इश्क़ मोहब्बत तो सब लोग किया करते हैं पसंद से अपनी अपनी
ग़ैर को भी क्यूँ न इस तहज़ीब से अब जोड़ कर रक्खा जाए ।।
मैं नही कहता कि सब कोई बात मेरी मान लेवें
गर मुकम्मिल हो बात मेरी और मुनासिब लगे ।।
अरुण तो कम से कम विचार तो चलाया जाए
शक्लोसूरत की रीत को अब भुलाया जाए
एक रिश्ता प्यार का इंसान से चलाया जाए ।।
मुझे लगता है कि सब कोई बात ये जानते हैं
अब यही पैगाम लिखित में फैलाया जाए ।।