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9 Mar 2022 · 1 min read

? तन्हा तन्हा ?ओ

डॉ अरुण कुमार शास्त्री *एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त

? तन्हा तन्हा ?

रात में तनहाई में
अपने अकेले पन में

कभी कभी किसी की
जरूरत महसूस होती है ।।

कोई मासूम बच्चों सा
खिला खिला नादान

आकर कहे क्या कोई
परेशानी है सोते क्यूँ नही ।।

सौंप दूँ जिसे सब समर्पित हो कर
सिमटकर सो जाऊँ एक
अबोध बालक सा तृप्त हो कर ।।

बेचैनियाँ मिरी छीन कर
हैरानियों का क्या कभी

कोई अन्त हो पायेगा
या ये प्यासा मन प्यासा

ही रह जायेगा या किसी
मृग सा रेगिस्तान में मारीचिका

के पीछे शुष्क तरुवर तत्व
प्रस्तर सा गिर पड़ेगा

अस्तित्व हीना निस्तेज मुक्त
अपने बोध को

नकारता रह जाएगा ।।

रात में तनहाई में
अपने अकेले पन में

कभी कभी किसी की
जरूरत महसूस होती है

कोई मासूम बच्चों सा
खिला खिला नादान

आकर कहे क्या कोई
परेशानी है सोते क्यूँ नही

आओ सौंप दो बेचैनियों को
मुझे तुम सो जाओ अब

और मत जलाओ
शम्मा की , तरह स्वयं को ।।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 2 Comments · 242 Views
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