? किरदार ?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
? मेरी कमर की सर्जरी के उपरांत मेरी सर्वप्रथम रचना ?
? किरदार ?
एक था मरीज
मेरे बैड के करीब
अस्पताल में था आहत
अपनी तकलीफ से
अस्पताल में
उसकी भी रीढ़ की हड्डी में
नसों पर दबाव था
उसका ऑपरेशन भी
हुआ था बहुत
संजीदगी से
राहत मगर न उसको मिल सकी
उसकी तकलीफ से
उसने आने में देर बहुत की थी
डॉक्टर क़ी सलाह मानने में
कोताही बहुत की थी
लेकिन वो दिल से नेक इन्सान था
कभी कभी कहिं कहिं
निर्णय लेने में हम इन्सान
भूल किया करते है
फिर तकलीफें से परेशान रहा करते हैं
बातों में उसकी आदमीयत की गहराई थी
पढ़ा लिखा तो बिल्कुल
ही न था , मगर उसको
जिन्दगीं का पूरा पूरा तजुर्बा था
शख्सियत की रौशनाई थी ।
अपनत्व का लहजा था
मेरा हमदर्द था वो मेरा ही
कुशल क्षेम ख्वार था
सच पूंछो तो मेरा यार था
दुआ के सिवा मैं
कुछ कर भी नही सकता था
उसके लिये मुझे एहसास है
उन छै दिन की सिर्फ मुलाकात में
मेरी तमाम प्रार्थनाएं हैं उसके लिये ।
वो बन गया है अहम किरदार मेरे लिए ।।
हर समय मुझे वो हिम्मत दिया करता था
कहता था जब मैं जाने लगा ऑपरेशन के लिए
आप अच्छे के लिए आये थे ना
तो भगवान अच्छा ही करेगा निश्चिंत रहिए
और उसके कहने के अनुसार ही हुआ
मेरी सभी कल्पनाओं को
आदर्श दोस्त ने भावनाओं का
आसरा देकर मुझे आधार दिया
उन छै दिन की सिर्फ मुलाकात में
मेरी तमाम प्रार्थनाएं हैं उसके लिये ।
वो बन गया है आज
अहम किरदार मेरे लिए ।।