???#” सुहागरात एक एहसास”#???
????? “सुहागरात एक एहसास”????
?दाम्पत्य जीवन की पवित्र,
पहली सीढ़ी , पहली बात।
उलझन में दिल, अजीब ख्याल,
कैसी होती है सुहागरात।।
?दो अनजाने सहमे दिल,
हुई है चंद सिर्फ मुलाकात।
बंद दरवाजा, सजी है सेज,पर,
क्या हो बात? कैसी शुरुआत ?
?वह डर नही,…. नहीं है डर,
जो धड़कनों के साथ बह रहा।
पर, सहमा रक्तवेग, मध्दम स्वर,
अंतर्मन से शायद कुछ कह रहा।।
?साँसे भी कुछ देर शांत रह,
फिर सहसा तेज बहने लगती।
रक्त वाहनियों से कपकपी भी,
चुपके से कानों में कुछ कहने लगती।।
?हजारों सवाल मन ही मन में,
मचलते, द्वंद खुद से करते है।
चुपचाप सहम के दोनों मन,
क्या पूछे ? कहते रहते है।।
?हाथ से खुद के हाथ को,
बस यूं ही मलते रहते है।
जज्बात बहुत सीने में, पर,
तन से हिलते डुलते रहते है।।
?खामोश जुबां, कंपित कंठ-ध्वनि,
सूखे लब, मुख भार बढ़ाते है।
झुके नयन घूंघट भीतर ही,
पल-पल मन को सकुचाते है।।
?सुहाग-हाथ, सुहागन-घूंघट को,
डरे, सहमे, घबराये उठाते हैं।
मुँह दिखाई रश्म बताकर, वर,
पहली सीढ़ी पर पाँव जमाते हैं।।
?लज्जा… , घूंघट को हटा देख,
पर्दा हाथों का लगाती है।
स्पर्श मात्र से कंपित तन को,
फिर स्थिर मुद्रा पर लाती है।।
?हाथ पिया का पाकर हाथ,
साँसों का वेग बढ़ाती है।
नवजीवन में प्रवेश एहसास,
पल-पल मन में संजोती है।।
?बहते भावों को कर स्थिर,
जीवनसाथी कह बात बढ़ाते है।
कुछ सवाल , कुछ समझाइस दे,
नवजीवन का अर्थ समझाते हैं।।
?होकर परिचित भावनाओं से,
परिचय रूह का कराते है।
पावन रिश्ते की अहमियत जान,
सुंदर जीवन की नींव सजाते हैं।।
?दो अंजान तन, दो अंजान मन,
जीवन पथ पर एक हो जाते है।
धर्म-कर्म, रीति-रिवाज, विश्वास,
बन्धन को “सुहागरात” बताते हैं।।
****कलम से****
संतोष बरमैया “जय”