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12 Feb 2022 · 1 min read

??स्मरण ही प्रेम का शुद्ध व्यापार??

स्मरण करना,
अपनत्व से,
क्या प्रेम नहीं है,
नहीं है क्या उसमें,
जीवटता, सूक्ष्मता,
का है अभाव,
संकुचित भावना,
समन्वित भावना,
में निर्मित करता,
अन्तर की उज्ज्वल,
प्रखर ध्वनि,
गूँजती है जो,
सम्प्रक्त होकर,
प्रेम के महल में,
केवल वही ध्वनि है,
जो गूँजती शान्ति में,
आनन्द से,
प्रकट करती,
आनन्द का उपवन,
जहाँ अग्रिम भाव में,
खड़ा है प्रेम का वृक्ष,
उस वृक्ष से फलित होता,
शुद्ध प्रेम,
जो अवसर देता,
ईश्वर को प्रेम से जानने का,
क्यों कि सत्य का आवरण भी बँधा है,
प्रेम से,
जो है दैवीय,
दिव्यता से भी,
परेय,बिखेरता रश्मियाँ,
उस स्मारक की,
जो है ईश्वर रूप,
मेरे तेरे हृदय में,
वही तो सिद्ध करे,
स्मरण करना ही तो है,
सच्चा प्रेम,
जिससे स्थिर होती प्रखर,
श्रद्धा,
अंगीकार की विधि,
क्यों स्मृति ही,
ईश्वर है,
ईश्वर ही स्मृति है।

@अभिषेक: पाराशर:????

Language: Hindi
236 Views
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