??अंततोगत्वा??
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
?अंततोगत्वा?
संयोग या वियोग कहिये या कोई सपना भूला बिसरा
ये जीवन प्रभु आधीन है ये तो बहना है उसके अँगना
इस जग में जो जो आया है कल को तो उसको जाना होगा
ना साथ लिए कुछ आया था ना साथ में कुछ ले जा पाएगा ।।
पल पल रिसता ये रिश्ता है हर पल ये रिसते जाना हैं
जो कर्म किए इस दुनिया में उनका तो कर्ज चुकाना है
तेरा मेरा मेरा तेरा इसका उसका उसका इसका
ये धर्म अधर्म जो किया धरा सब गुजरे पल की बातें हैं ।।
जब अन्त समय आता है तो सब कुछ ही बह जाता हैं
ये जीवन मृत्यु दुख सुख के बानी सब कुछ जैसे बहता पानी
क्या नहीं मिला तुझको जग में क्या तूने न भोगा इस जग में
कोई भी आशा तेरी तो क्या सब मन की मन्नत सोची समझी ।।
थी कोरी निपट अघोरी सी सब तंत्र मंत्र अधिकार उसी
सर्वज्ञ वही सर्वत्र वही सब से शक्ति शाली, जग का कर्ता कारक है
जो नियत नियंता सजग सदा उसके ही सब प्रतिपादक हैं
तेरा तुझसे मेरा मुझसे कोई भी अंतरद्वंद कहाँ ।।
जो राम रचे सो कर्म करे मुझमें इतनी सामर्थ्य कहाँ
संयोग या वियोग कहिये या कोई सपना भूला बिसरा
ये जीवन प्रभु आधीन है ये तो बहना है उसके अँगना ।।
इस जग में जो जो आया है कल को तो उसको जाना होगा
ना साथ लिए कुछ आया था ना साथ में कुछ ले जा पाएगा
पल पल रिसता ये रिश्ता है हर पल ये रिसते जाना हैं
जो कर्म किए इस दुनिया में उनका तो कर्ज चुकाना है ।।