?रणबांकुरों?
एक अबोध बालक ?अरुण अतृप्त
देश के रण बाँकुरों की शहादत को
नतमस्तक
ग़ज़ल
जिंदगी कुर्बान करदी देश हित में
दी शहादत आपने वीरों देश हित में ।।
माँ भारती की इज़्ज़त को कोई आंच न आये
लड़ मरे तुम खून की आखरी बूँद तक तन में ।।
वीर जवानों खून आपका व्यर्थ न जाएगा
एक एक बच्चा इसी परंपरा को दोहरायेगा ।।
दुश्मनों जाओ तुम कहां तक भी छुपोगे
ढूँढ़ कर मारेंगे जो किसी बिल में भी रहोगे ।।
आज तक हमने सहा, शान्ति को तुमने न माना
अब दिखा देंगे तुम्हें हम दूध का अपने असर
सर कलम कर जा चड़ेंगे तेरी छाती पर अलम
वीरता की जिन मिसालों ने यहाँ गाढ़े है परचम
हम उन्ही को याद कर के कार्य साधक हैं सजग