💐मौज़💐
डॉ अरुण कुमार शास्त्री💐एक अबोध बालक💐अरुण अतृप्त 👌
काश बन जाता कोई मौज़ मेरे उदास मन की ।।
लहर बन कर बहा ले जाता उदासी मेरे मन की ।।
मैंने खोजे तर्क अनेकों दिल के बहलाने के लिए ।।
काश कोई एक तर्क कामयाबी का फ़लसफ़ा हो जाता ।।
दुनिया में वक़्त को लोग समझते हैं गुजरने के बाद ।।
काश मैं भी एक गुजरा वक़्त ही बन जाता दो पल के लिए ।।
तल्खियां जिंदगी की सभी को पेश आती ही होंगी ।।
हुनरमंद होंगे लोग कई बड़े बड़े जिनको हाँसिल मुक़ाम हुये ।।
तुझको भी तो आती हैं तन्हाई से लड़ने के तरीके तमाम ।।
गोया के सिर्फ हम ही को क्यूँ मिले खिताब नाकामयाबी के ।।
छोड़ देता हूँ जद्दोजहद की ज़िद्द, चलिए एय मोहब्बत।।
क्या जरूरी हैं ये खिताब इश्क़ ओ आशिक़ी की
कामयाबी के ।।
अब न जाएगा एक अबोध बालक हुस्न वालों की गली ।।
क्या रखा है अकीदतमंदों के बीच बैठ के गाल बजाने से ।।