?नारी त्वमेव ब्रह्म:?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ?एक अबोध बालक?अरुण अतृप्त
?नारी त्वमेव ब्रह्म:?
हे नारी तुझपे हम
सब हैं वारी ।।
फिर काहे तू रहती है
हमसे न्यारी न्यारी ।।
उमर की हो तू बच्ची
या फिर परिपक्व सुलच्छी ।।
अबला हो या सबला
लेकिन तू है सक्षम लछमि ।।
बिन तेरे जी हाँ
बिन तेरे
मेरी गाड़ी जैसे बिन पिट्रोल सवारी ।।
इक पल भी न चल पाये
मेरे जीवन की बैल गाड़ी
तू है तो ये जग सारा
मैंनू लगदा है पियारा पियारा ।।
वरना तो घास फूंस का
जैसे कोई घसियारा।।
हे नारी तुझपे हम
सब हैं वारी ।।
फिर काहे तू रहती है
हमसे न्यारी न्यारी ।।
जीवन की मुख्य नियंता
कर्मो की विविध प्रवणता
धर्मो की सक्रिय सजगता
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
बिन तेरे लगे न प्यारे
भक्ति की तू है शक्ति
फिर काहे तू रहती है
हमसे न्यारी न्यारी ।।
हे नारी तुझपे हम
सब हैं वारी ।।